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धान की उन्नत किस्म

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
धान की उन्नत किस्में अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान हो रहे मजबूत

धान की उन्नत किस्में अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान हो रहे मजबूत

रायपुर। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां धान फसल के लिए अनुकूल वातावरण होने के कारण किसान साल में दो बार धान की फसल लगाते हैं, जो सदियों से उनकी आय का एक बहुत बड़ा साधन बना हुआ। वहीं नई तकनीकों के उपयोग ने भी धान फसल की पैदावार बढ़ाने में काफी अहम भूमिका निभाई है। यदि बात करें अच्छी किस्मों की तो यहां जवा फूल, दुबराज, विष्णु भोग, लुचई, देव भोग, कालीमूज, बासमती के अलावा कुछ ऐसी किस्में हैं, जिनसे किसान ज्यादा आय अर्जित कर रहे हैं। वहीं रायपुर में स्थित इंदिरा गांधी कृषि महाविद्यालय ने धान की नई-कई किस्मों की खोज की है, जिसको अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान समृद्धि की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा संचालित की जा रही योजनाओं का लाभ भी किसान बखूबी उठा रहे हैं और अपने सपनों को पंख लगा रहे हैं।

रोज सामने आ रही आत्मनिर्भरता की कहानी

कभी नक्सली और पिछड़े राज्यों में शुमार छत्तीसगढ़ आज खेती-किसानी के मामले में देश में सिरमौर बना हुआ है। यहां के किसान इतने आत्मनिर्भर हो चुके हैं कि उन्हें अब अपने भविष्य की चिंता कम ही सताती है। वहीं सरकार की ऋण माफी और बोनस जैसी योजनाओं के कारण भी यहां के किसान खेती की ओर और आकर्षित हुए हैं, जिनके आत्मनिर्भर बनने की कहानी अक्सर सामने आती रहती है। कई किसान तो ऐसे थे जिनकी हालत काफी खराब थी, पर धान की उन्नत किस्म अपनाकर उन्होंने न केवल अपना जीवन सुधारा, बल्कि एक प्रकार से राज्य में खेती किसानी का प्रचार-प्रसार कर जो लोग खेती किसानी छोड़ने का मन बना चुके थे, उन्हें फिर से खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी किया।


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नर-नारी धान अपनाकर समृद्ध बन रहे किसान

वहीं छत्तीसगढ़ में एक ऐसी धान की किस्म भी है जिसको अपनाकर किसान अधिक मुनाफा कमा रह हैं। इस किस्म का नाम नर-नारी धान है। धान की इस किस्म को अपनाकर किसान एक एकड़ में एक लाख रुपए तक का फायदा ले रहे हैं। शायद आप में से कईयों ने धान की इस किस्म के बारे में न सुना हो, लेकिन यह काफी मुनाफे की फसल है। इसमें नर व मादा पौधों को खेत में ही क्रास यानी पूरक परागण कराया जाता है। इस दौरान नर पौधों का पराग मादा पौधे में जाता है, जिससे बीज बनता है और इसी से धान के पौधे तैयार किये जाते हैं। धान की इस किस्म की खासियत ये हैं, कि इसकी एक एकड़ खेती में 10 से 15 क्विंटल की पैदावार होती है। धान के इस बीज की मांग मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में ज्यादा है। छत्तीसगढ़ के किसान भाई इस किस्म को लगाकर तगड़ा मुनाफा ले रहे हैं।

महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी बढ़ी मांग

नर-नारी धान की खासियत है कि यदि आप एक एकड़ में इस धान की बुवाई करते हैं, तो एक एकड़ में 15 क्विंटल धान होता है. प्रति क्विंटल धान की कीमत लगभग 9 हजार रुपए है. यानी एक एकड़ के खेत में आपको 1.35 लाख रुपए मिल जाते हैं. छत्तीसगढ़ के धमतरी, बालोद व दुर्ग जिले में किसान इस किस्म का धान उगा रहे हैं। धमतरी में 5 हजार एकड़ से ज्यादा में इस तरह की धान की खेती की जा रही है। रायपुर में धीरे-धीरे इसका रकबा बढ़ने लगा है। नर-नारी धान का परागण करने के लिए रस्सी या बांस का सहारा लिया जाता है। दो कतार में नर व 6-8 कतारों में मादा पौधे होते हैं। इन्हें सीड पैरेंट्स भी कहा जाता है। इसकी रोपाई का तरीका दूसरी किस्मों से बिल्कुल अलग है। इसके पौधे को रोपाई से तैयार किया जाता है। बोनी या लाईचोपी पद्धति से इस धान का उत्पादन संभव नहीं है। पादप प्रजननन विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के एचओडी डॉ. दीपक शर्मा ने कहा कि नर-मादा धान की किस्म से किसानों को अच्छा फायदा हो रहा है। इसका रकबा बढ़ रहा है। ये हाइब्रिड धान है जिसका बीज बनता है।


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छत्तीसगढ़ में साल दर साल धान खरीदी का नया रिकॉर्ड बन रहा

छत्तीसगढ़ में साल दर साल धान खरीदी का नया रिकॉर्ड बन रहा है। सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के किसानों ने वर्ष 2021-21 में किसानों ने सरकार को धान बेचकर करीब 20 हजार करोड़ रुपये कमाए हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार का दावा भी है कि अब खेती-किसानी छत्तीसगढ़ में लाभकारी व्यवसाय बन गया है। आंकड़ों के मुताबिक चालू खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 में धान की रिकॉर्ड खरीदी की गई है। इस साल 21.77 लाख किसानों से करीब 98 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया है। इसके एवज में किसानों को करीब 20 हजार करोड़ रुपयों का भुगतान राज्य सरकार द्वारा किए जाने का दावा किया गया है।

सुगंधित धान की वैज्ञानिकों ने सहेजी किस्में

वहीं दूसरी ओर छग में जिस धान की मांग ज्यादा बढ़ रही है और सरकार जिस धान को ज्यादा महत्व दे रही है वैसे-वैसे यहां से कुछ धान की किस्में विलुप्त होती जा रही हैं और कुछ तो विलुप्ति की कगार पर भी पहुंच गई थी ऐसे में इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किसानों के साथ मिलकर इन्हें सहेजा। कृषि विज्ञान केंद्रों ने भी इस काम में पूरी मदद की। महज 10-15 साल पहले तक जवा फूल, दुबराज, विष्णु भोग, लुचई जैसी सुगंधित धान की किस्में राज्य की पहचान थी। हालांकि किसानों को इनकी पैदावार से लाभ नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे स्वर्णा, एमटीयू 1010 जैसी किस्मों को सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदने लगी। ऐसे सुगंधित धान की कई वैरायटी विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई। कई गांवों से तो ये गायब ही हो गई। कुछ किसान अपने उपयोग के लिए सीमित क्षेत्र में उगा रहे थे, लेकिन उनकी संख्या व एरिया सीमित था। इसे गंभीरता से लेते हुए चार साल पहले इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी रायपुर ने इन्हें सहेजने का बीड़ा उठाया और इन किस्मों को सहेजने में कड़ी भूमिका निभाई। कृषि वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में जाकर न सिर्फ इन किस्मों को ढूंढा बल्कि उन्हें सहेजने में भी बड़ी भूमिका निभाई।

कृषि के क्षेत्र में छग को मिले कई पुरस्कार

धान की अलग-अलग प्रकार के पैदावार के लिए जाने जाने वाले छत्तीसगढ़ ने राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। छत्तीसगढ़ को उन्नत कृषि प्रबंधन और किसानों के लिए बनाई गई योजनाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा कई वर्गो में सम्मानित किया जा चुका है। छत्तीसगढ़ को कई राष्ट्रीय अवार्ड भी अब तक मिल चुके हैं, जिससे विश्व पटल पर छत्तीसगढ़ एक सितारे के रूप में चमक और दमक रहा है।
जानें उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली धान की इन दस उन्नत किस्मों की खासियत और उत्पादन के बारे में

जानें उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली धान की इन दस उन्नत किस्मों की खासियत और उत्पादन के बारे में

आज हम आपको धान की उन दस उन्नत प्रजातियों के विषय में बताने जा रहे हैं। जो कि उत्तर प्रदेश में सामान्यतः उगाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में धान की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। अब हम बात करेंगे इन 10 उन्नत किस्मों में से हर एक की अपनी प्रमुख विशेषताओं और फायदों के बारे में। बतादें, कि धान की इन उन्नत किस्मों को उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा उनकी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध साथ ही उत्कृष्ट अनाज की गुणवत्ता की वजह से पसंद किया जाता है। किसी विशेष प्रजाति का चयन किसानों की प्रमुख जरूरतों और प्राथमिकताओं पर आश्रित रहता है। चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन सिंचाई सुविधाओं, उर्वरक उपयोग मृदा के प्रकार, मौसम, कीट प्रबंधन बाकी प्रबंधन कार्य जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर अलग हो सकता है। हालांकि, यहां धान की 10 उन्नत प्रजाति हैं। तो वहीं उनकी अनुमानित प्रति हेक्टेयर उत्पादन, जो समान्तयः उत्तर प्रदेश में बोई जाती हैं।

धान की दो उन्नत प्रजातियां

पंत धान 10: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक और संकर किस्म है, जो कि उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता हेतु मशहूर है। यह एक लघु समयावधि की फसल भी है, जो कि तकरीबन 115-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।

पीबी1: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक ऐसी किस्म है, जिसको उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जाता है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों एवं रोगों के प्रति अच्छे प्रतिरोध और उत्कृष्ट अनाज की गुणवत्ता हेतु जाना जाता है। यह अति शीघ्र पकने वाली फसल भी है, जिसे पकने में लगभग 110-115 दिन लगते हैं।

एचयूआर 105: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक संकर किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में काफी मशहूर है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों और रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता हेतु जाना जाता है। यह एक छोटी अवधि की फसल भी है, जो तकरीबन 115-120 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

एनडीआर 97: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक गैर-बासमती किस्म है, जो आमतौर पर उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। यह अपनी उच्च उपज क्षमता, कीटों और रोगों के लिए अच्छे प्रतिरोध और अनाज की अच्छी गुणवत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह पकने वाली फसल भी है, जिसके पकने में तकरीबन 115-120 दिन लग जाते हैं।

पूसा बासमती 1121: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह बासमती चावल की एक बेहतरीन पैदावार देने वाली किस्म है, जो अपने लंबे एवं पतले दानों, सुखद सुगंध व उत्कृष्ट खाना पकाने की गुणवत्ता हेतु जानी जाती है। यह कीटों एवं रोगों के लिए भी प्रतिरोधी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए अन्य किस्मों की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है। इसकी बाजार में काफी मांग है। साथ ही, इसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर बिरयानी बनाने के लिए किया जाता है। यह भी पढ़ें: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

पूसा सुगंध 5: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक सुगंधित चावल की किस्म है, जो उत्तर प्रदेश के अंदर व्यापक तौर से उत्पादित की जाती है। यह अपने छोटे और सुगंधित अनाज, उच्च उपज क्षमता के लिए मशहूर है। यह पकाने में भी आसान होती है।

पूसा 44: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक गैर-बासमती किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में बेहद मशहूर है। यह भी एक उच्च उपज वाली किस्म है, जो बहुत सारे कीटों व रोगों के लिए प्रतिरोधी सबित होती है, जो कि इसको कृषकों हेतु एक विश्वसनीय विकल्प बनाती है।

सरजू 52: 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह एक और गैर-बासमती किस्म है जो कि सामान्यतः उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। यह अपने मध्यम आकार के अनाज एवं खाना पकाने की बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जानी जाती है। साथ ही, यह कीटों और रोगों के लिए भी प्रतिरोधी है।

महसूरी: 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक किस्म है, जो उत्तर प्रदेश समेत भारत के विभिन्न इलाकों में उगाई जाती है। यह अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता, उच्च उपज क्षमता के साथ-साथ अच्छी खाना पकाने की गुणवत्ता हेतु जानी जाती है। यह शीघ्र पकने वाला भी है एवं यह 120-125 दिनों में कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

पीआर 121: 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

यह चावल की एक संकर किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। यह किस्म की उच्च उत्पादक क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। कीटों एवं रोगों के प्रति अच्छी प्रतिरोध क्षमता और उत्तम अनाज की गुणवत्ता हेतु काफी मशहूर मानी जाती है। यह एक छोटी समयावधि की फसल भी है, जो तकरीबन 110-115 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। यह धान की उन्नत किस्मों के कुछ उदाहरण हैं, जो सामान्यतः उत्तर प्रदेश में उत्पादित की जाती हैं। बहुत सारी बाकी किस्में भी उत्पादित की जाती हैं, जिनमें से हर एक किस्म की अपनी अनोखी खासियत और फायदा है। यह ध्यान रखना काफी अहम है, कि इस लेख में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अनुमानित आंकड़ों पर आधारित है। क्योंकि किसानों द्वारा अपनाई गई खास स्थितियों एवं प्रबंधन प्रथाओं के तहत वास्तविक पैदावार भिन्न हो सकती है।
धान की इन किस्मों का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं

धान की इन किस्मों का उत्पादन करके उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं

पूसा सुगंध- 5 बासमती धान की एक उत्तम किस्म है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को हरियाणा, दिल्ली जम्मू- कश्मीर, पंजाब और उत्तर प्रदेश की जलवायु को देखते हुए विकसित किया है। मानसून की दस्तक के साथ ही धान की खेती चालू हो गई है। समस्त राज्यों में किसान भिन्न भिन्न किस्म के धान का उत्पादन कर रहे हैं। कोई मंसूरी धान की खेती कर रहा है, तो कोई अनामिका धान की खेती कर रहा है। परंतु, बासमती की बात ही कुछ ओर है। अगर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा के किसान बासमती की खेती करना चाहते हैं, तो आज हम उनको कुछ ऐसी प्रमुख किस्मों के विषय में जानकारी प्रदान करेंगे, जिससे उनको अच्छी खासी पैदावार अर्जित होगी। विशेष बात यह है, कि इन प्रजातियों को कृषि वैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न राज्यों के मौसम को ध्यान में रखते हुए इजात किया है।

पूसा सुगंध- 5:

पूसा सुगंध- 5 बासमती धान की एक उम्दा किस्म है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस किस्म को जम्मू- कश्मीर, पंजाब, दिल्ली, यूपी और हरियाणा की जलवायु को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है। यदि इन राज्यों के किसान पूसा सुगंध- 5 की खेती करते हैं, तो उनको बेहतरीन उत्पादन मिलेगा। पूसा सुगंध- 5 की रोपाई करने के 125 दिन पश्चात इसकी फसल पक कर तैयार हो जाती है। इसकी खेती करने पर एक हेक्टेयर में 60-70 क्विंटल तक पैदावार होगी। ये भी पढ़े: धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

पूसा बासमती- 1121:

पूसा बासमती- 1121 को कृषि वैज्ञानिकों ने सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया है। इसकी फसल 145 दिन के अंतर्गत तैयार हो जाती है। पूसा बासमती- 1121 की उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। विशेष बात यह है, कि पूसा बासमती- 1121 धान की एक अगेती किस्म है।

पूसा सुगंध- 3:

पूसा सुगंध- 3 को सुगंध और लंबे चावल के दाने के लिए जाना जाता है। यह खाने में बेहद ही स्वादिष्ट लगता है। यदि हरियाणा, पश्चिमी यूपी, उत्तराखंड, पंजाब और दिल्ली के सिंचित क्षेत्रों के किसान इसकी खेती करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 60-65 क्विंटल पैदावार अर्जित कर सकेंगे। इसकी फसल 125 दिन के अंतर्गत पक कर तैयार हो जाती है। ये भी पढ़े: पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन

पूसा बासमती- 6:

पूसा बासमती- 6 की सिंचित इलाकों में रोपाई करने पर अधिक उत्पादन अर्जित होगा। यह एक बौनी प्रजाति का बासमती धान होता है। इसके दाने काफी ज्यादा सुगंधित होते हैं। पूसा बासमती- 6 की उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 55 से 60 क्विंटल होती है।

पूसा बासमती- 1:

पूसा बासमती- 1 धान की एक ऐसी किस्म है, जिसका उत्पादन किसी भी प्रकार के सिंचित क्षेत्रों में किया जा सकता है। इसमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज्यादा पाई जाती है। इसमें झुलसा रोग की संभावना ना के समान है। विशेष बात यह है, कि पूसा बासमती- 1 की फसल 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मतलब कि 135 दिन के पश्चात किसान इसकी कटाई कर सकते हैं। यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में पूसा बासमती- 1 की खेती करते हैं, तो लगभग 50-55 क्विटल तक उत्पादन मिल सकता है।